एक अजब सी बेचैनी है ,पर चैनोअमन कहीं नहीं है.
ख्वाईशें अब उभरी उभरी सी हैं ,पर साथ किसी का नहीं है
कदमो तलें ,ज़िन्दगी हैरत है,पर अपना कारवाँ कहीं नहीं है
आहट सुन जो दौर पड़ी है,मुस्कान होठो से,
रास्तो पर खिलखिला रही है,मुझे क्यूँ सता रही है
रास्तो पर खिलखिला रही है,मुझे क्यूँ सता रही है
कब से इस अनजान सफ़र का अधुरा मुसाफिर मैं ,इक तलास में सदियाँ गुजार दी है ,
सूखे गले से भींगी वो बाते,निकली तो, पर गीत कहीं नहीं है .
खुश हूँ कि इस गुमनाम शहर में कोई मुझे जानता नहीं है,
खुद से दो बातें तो हो जाती हैं,जो अक्स भूलने लगा था,उससे मुलाकाते तो हो जाती है.
आज चल पड़ा हू जिन रास्तो पर, कितनी तन्हाईयाँ है,
सो लेता हूँ चैन से मैं,इस उमस सी रात में ,पर बरसातें कहीं नहीं हैं,
कुछ पिघल जाता है,खामोसी बनकर,पर दर्द दूर दूर तक नहीं है.आज चल पड़ा हू जिन रास्तो पर, कितनी तन्हाईयाँ है,
पर मुझसे जुड़ी ये कैसी आवारगी है जो हँस कर निकल जाती है
शुकून दे जाती है,लहरों से मिलकर मेरी ही परछाईयाँ गुदगुदी कर जाती है
आवाज़ दू मैं खुद को और फिर ओ मुझे दे आवाज़,ऐसी बदहवासी कहीं नहीं है
चलो आज गुजर जायें इन्ही गलियों से, खुद को आबाद कर दे,
जो समय रेत से भरी थी मैंने ,आज मुट्ठी में वो ही नहीं है.
चलो आज गुजर जायें इन्ही गलियों से, खुद को आबाद कर दे,
जो समय रेत से भरी थी मैंने ,आज मुट्ठी में वो ही नहीं है.